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काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।
देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।
वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया ।
लक्ष्मी: दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितम् ।।
सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:।
यदि दैवाद् फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते।।
हस्तस्य भूषणम् दानम् , सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
श्रोतस्य भूषणं शास्त्रं ,भूषणै: किं प्रयोजनम् ।।
न कश्चित् कस्यचित् मित्रं न कश्चित् कस्यचित् रिपु:
न विना परवादेन रमते दुर्जनो जन:।
काक:सर्वरसान् भुङ्क्ते विना मध्यं न तृप्यति।।